International Journal of Innovative Research in Engineering & Multidisciplinary Physical Sciences
E-ISSN: 2349-7300Impact Factor - 9.907

A Widely Indexed Open Access Peer Reviewed Online Scholarly International Journal

Call for Paper Volume 12 Issue 4 July-August 2024 Submit your research for publication

आचार्य मम्मट के काव्यप्रयोजन, समीक्षात्मक अध्ययन

Authors: बदलू राम

Country: India

Full-text Research PDF File:   View   |   Download


Abstract: प्राचीन काल से ही भारत के मनीषियों ने काव्य या साहित्य के प्रयोजन पर विचार किया है। "यहाँ कला कला के लिये ( Arts for Art's sake) की बात को नहीं माना गया और न आधुनिक उपयोगितावाद को ही काव्यभूमि में प्रतिष्ठित किया गया है अपितु काव्य के दृष्ट तथा अदृष्ट दोनों प्रकार के प्रयोजन माने गये हैं। नाट्य या काव्य के प्रयोजन पर सर्वप्रथम भरतमुनि ने (तृतीय शताब्दी) में विचार किया था । उनका कथन है –
वेदविद्येतिहासानामाख्यानपरिकल्पनम् विनोदजननं लोके नाटयमेतद् भविष्यति ।
दुःखार्तानां श्रमार्तानां शोकार्तानां तपस्विनाम् ।
विश्रामजननं लोके नाटयमेतद् भविष्यति ।।
अर्थात नाट्य कला का प्रयोजन है- लोक का मनोरंजन एवं शोकपीडित तथा परिश्रान्त जनों को विश्रान्ति प्रदान करना । भरत मुनि के पश्चात् ज्यों ज्यों साहित्यिक विवेचना का विकास होने लगा त्यों त्यों काव्य के प्रयोजन का भी विशद विवेचन किया गया। आलकांरिक आचार्य भामह के अनुसार –
धर्मार्थकाममोक्षेषु वैचक्षण्यं कलासु च।
करोति कीर्ति प्रीतिं च साधुकाव्यनिषेवणम् ।।
अर्थात् सत्काव्य का अनुशीलन (1) धर्म, अर्थ काम तथा मोक्ष नामक पुरुषार्थ-चतुष्टय - चतुष्टय एवं कलाओं में निपुणता (2) यशः प्राप्ति तथा (3) प्रीति का कारण है ।

Keywords:


Paper Id: 230320

Published On: 2023-05-12

Published In: Volume 11, Issue 3, May-June 2023

Cite This: आचार्य मम्मट के काव्यप्रयोजन, समीक्षात्मक अध्ययन - बदलू राम - IJIRMPS Volume 11, Issue 3, May-June 2023.

Share this