चार्वाक दर्शन और मोक्ष
Authors: मनोज कुमारी, सुमित शर्मा
Country: India
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Abstract: आज के अर्थ प्रधान युग में भौतिक सुखों की चाह को लेकर जन मानस् में इस प्रकार आपाधापी मची हुई है कि उसके आगे जीवन की अन्य बातें गौण हो चली हैं। आदमी को यह होश नहीं है कि वह क्या है और कहाँ जा रहा हे? ज्यो-ज्यों वह उन्नति की ओर अग्रसर हो रहा है, जीवन की सुख-शान्ति छिनती चली जा रही है। चारों और असन्तोष और अशान्ति का वातावरण है। पुरूषार्थचतुष्टय में से केवल अर्थ और काम का वर्चस्व ही जीवन के स्वरूप को तिरोहित कर रहा है। अपवादों को छोड़कर मनुष्य धनवान बनने की फिक्र में मदहोश है। वह अहर्निश कामलिप्सा व भोगवाद का आनन्द लेने में ही प्रयत्नशील है। उसे नैतिक-अनैतिक, शुचिता और अशुचिता, अच्छा-बुरा, धर्म-अधर्म जैसे विचारों का फर्क समझ नहीं आ रहा हे। वह निरन्तर भोगवाद की ओर अग्रसर हो रहा है।
Keywords:
Paper Id: 230478
Published On: 2023-11-02
Published In: Volume 11, Issue 6, November-December 2023
Cite This: चार्वाक दर्शन और मोक्ष - मनोज कुमारी, सुमित शर्मा - IJIRMPS Volume 11, Issue 6, November-December 2023.