International Journal of Innovative Research in Engineering & Multidisciplinary Physical Sciences
E-ISSN: 2349-7300Impact Factor - 9.907

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जाति उन्मूलन सिद्धान्त: वैज्ञानिक एवं जनतांत्रिक चिन्तन डाॅ. भीमराव अम्बेडकर के विचारों के संदर्भ में

Authors: प्रोफेसर (डाॅ.) संजय कुमार, डाॅ. रेनू

Country: India

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Abstract: भारतीय संविधान के शिल्पकार डाॅ॰ बी॰आर॰ आम्बेडकर (भारत रत्न से सम्मानित) उनकी विचारधारा संघर्ष और उस संघर्ष के प्रति उनका आन्दोलन ही भारत की परम्परागत रूढ़िवादी अमानवीय जाति व्यवस्था का उन्मूलन करना तथा समतावादी समाज का निर्माण करना है। उनके द्वारा भारतीय समाज भारत के संविधान को जनतांत्रिक रूप में प्रस्तुत किये जाने ओर संसद द्वारा एकमत से स्वीकार किये जाने के बाद भी दलित वर्ग के प्रति छुआछूत व तिरस्कार जैसी अमानवीय प्रवृत्ति के कारण उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति में गुणात्मक बदलाव क्यों नही हो सका इत्यादि कारणों पर उन्होंने गहन चिन्तन कर विश्लेषण किया कि आजादी के बाद सत्ता में आयी लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों द्वारा राजनीतिक स्तर, सामाजिक-सांस्कृतिक तथा आर्थिक स्थिति में गुणात्मक बदलाव क्यों नही हो पाया, किन कारणों से इनके हितों की अनदेखी होती रही है। (इत्यादि) सामाजिक विशेषकर जातिगत उत्पीड़न, शोषण और आर्थिक क्षेत्र की लगभग सभी इकाइयों से उनके बहिष्कार तथा सांस्कृतिक अलगाव के विभिन्न सन्दर्भों में राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल करने के पश्चात् भी इस प्रकार के सन्दर्भों पर विचार किया जाना आवश्यक है। इस प्रकार की चेतावानियाँ डाॅ॰ भीमराव अम्बेडकर जी ने तत्कालीन राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के नेताओं को दी तथा जातिगत संबंधित मुद्दों को लेकर उन्होंने स्वयं यह लड़ाई भी लड़ी थी।

Keywords: समाज, दलित, शोषण, सामाजिक, राजनीतिक, परिस्थितियाँ, जाति जनजाति, वैज्ञानिक और सैद्धान्तिक चिंतन इत्यादि।


Paper Id: 232339

Published On: 2025-01-08

Published In: Volume 13, Issue 1, January-February 2025

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